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दुनियादारी के सारे ढब आते हैं

दुनियादारी   के   सारे   ढब आते   हैं हम   को   भी   अब   सारे   करतब   आते   हैं लाज़िम   है   तालीम   भी   लेकिन   कुछ   बच्चे खाना   खाने   को   भी   मकतब   आते   हैं कब   से   टाले   वो   हम   को   ये   कह   कह   के आते   हैं ,   अब   आते   हैं ,   अब   आते   हैं कितनी   बातें   सुनना   चाहूँ   मैं ,   लेकिन आते   हैं   जब   वो ,   सी   कर   लब   आते   हैं मेरे   अन्दर   के   बहर - ए - ख़ामोशी   में कितने   तूफाँ   हर   दिन   या   रब   आते   हैं मोड़   कोई   क़िस्मत   फिर   लेने   वाली   है ख़्वाबों   में   अपने   अब   अक़रब आते   हैं बेज़ारी , बेदाद , जफ़ा ,   तर्क - ए - उल्फ़त उन   को   सब   बातों   के   मतलब   आते   हैं जागी   आँखों   का   मंज़र   भी   देख   ज़रा " ख़्वाबों   का   क्या   है , वो   हर   शब   आते   हैं " खिल   उठते   हैं   फूल   सुना   है   हर   जानिब वो   मौसम   ' मुमताज़ ' यहाँ   कब   आते   हैं دنیاداری   کے   سارے   ڈھب   آتے   ہیں ہم   کو   بھی   اب   سارے   کرتب

ज़र्ब तक़दीर ने वो दी कि मेरी हार के साथ

ज़र्ब तक़दीर ने वो दी कि मेरी हार के साथ रेज़ा रेज़ा हुई तौक़ीर भी पिनदार के साथ जैसे गुल कोई हम आग़ोश रहे ख़ार के साथ सैकड़ों रोग लगे हैं दिल-ए-बेज़ार के साथ छू गई थी अभी हौले से नसीम-ए-सहरी ज़ुल्फ़ अठखेलियाँ करने लगी रुख़सार के साथ रास्ता लिपटा रहा पाँव से नागन की तरह हम भी बस चलते रहे इस रह-ए-ख़मदार के साथ रूह ज़ख़्मी हुई , लेकिन ये तमाशा भी हुआ हो गई कुंद वो शमशीर भी इस वार के साथ दीन भी बिकता है बाज़ार-ए-सियासत में कि अब अहल-ए-ईमाँ भी नज़र आते हैं कुफ़्फ़ार के साथ हक़ पे तू है तो मेरी आँखों से आँखें भी मिला क्यूँ नदामत सी घुली है तेरे इंकार के साथ   है नवाज़िश कि बुलाया मुझे "मुमताज़" यहाँ लीजिये हाज़िर-ए-ख़िदमत हूँ मैं अशआर के साथ

जो दिल को क़ैद किये है हिसार, किस का है

जो दिल को क़ैद किये है हिसार , किस का है शऊर - ए - दीद पे आख़िर ग़ुबार किस   का   है करेंगे हम भी तनासुब   तो   सब्र का   लेकिन ये तुम भी सोच लो परवरदिगार किस का   है ये   ज़ख़्म ज़ख़्म   तमन्ना , लहू   लहू   हस्ती जो दिल में उतरा है सीधा , ये वार किस का है सलाम करते हैं झुक झुक के गुलसिताँ जिसको खिला खिला रुख़ - ए - रश्क - ए - बहार किस का   है अज़ल से जिस के त ' अक़्क़ुब में है जुनूँ   मेरा लरज़ता अक्स सराबों के   पार   किस का   है तराशे जाता है मुझ को ये कौन   सदियों   से " ये लख़्त लख़्त बदन शाहकार किस   का   है " हज़ार रेज़ों में बिखरा   दिया   है   हस्ती   को दिल - ए - फिगार पे ' मुमताज़ ' वार किस   का   है جو   دل   کو   قید   کے   ہے , حصار   کس   کا   ہے شعور_ دید   پہ    آخر   غبار   کس   کا   ہے کرینگے   ہم   بھی   تناسب   تو   صبر   کا   لیکن یہ   تم   بھی   سوچ   لو   پروردگار   کس   کا   ہے یہ   زخم   زخم   تمنا , لہ