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दीद की हर उम्मीद मिटा दी

दीद की   हर उम्मीद   मिटा दी हम ने   तेरी तस्वीर    छुपा दी याद भी उस की दिल से मिटा दी बारहा ख़ुद को यूँ भी सज़ा   दी दिल तो हुआ अब दर्द   का   आदी अब जो तसल्ली दी भी तो क्या दी दूर निकल आए हैं तो   हम   को ख़्वाब नगर से किस ने   सदा   दी हम पे है   एहसान   ख़ुदा   का रंग - ए - तग़ज्ज़ुल , फ़हम - ओ - ज़का दी होश   ने   पहने   पंख   जुनूँ के उस ने हमें क्या शय ये पिला दी माज़ी   के   वीरान   मकाँ की जब   गुज़रे   ज़ंजीर   हिला   दी जल   जाएं   सब   ज़हन की   पर्तें हम   को   तबीअत   बर्क़ नुमा   दी चैन   के   इक   लम्हे   की   ख़ातिर हर   क़ीमत   " मुमताज़ " सिवा   दी دید کی ہر امید مٹا دی ہم نے تیری تصویر چھپا دی یاد   بھی   اس   کی   دل   سے   مٹا   دی بارہا   خود   کو   یوں   بھی   سزا   دی دل   تو   ہوا   اب   درد   کا   عادی اب   جو   تسلّی دی   بھی   تو   کیا   دی دور   نکل   آے   ہیں   تو   ہم   کو خواب   نگر   سے   کس   نے

ख़ुश हो रहा है वो जो मोहब्बत को मार के

ख़ुश हो   रहा   है   वो   जो   मोहब्बत    को   मार   के ढूँढा किये   हैं   हम   भी   तो   रस्ते   फ़रार   के छींटे   उरूसी   कैसे   ये   बिखरे   हैं   चार   सू अब   के   खिज़ां में   रंग   हैं   फ़स्ल   ए बहार   के कब   तक   न   जाने   देते   रहेंगे   अज़ीयतें कुछ   रह   गए   हैं   ज़ख्म   में   टुकड़े   जो   ख़ार   के पल   पल   रहे   हिसार   में   इक   बेहिसी   के   हम   एहसान   हम   पे   कितने   हैं   एहद   ए   क़रार   के काँटा   सा   एक   चुभता   था   कब   से   जो   ज़ेहन   में काग़ज़   पे   रख   दिया   है   वही   सच   उतार   के हम   एक   गाम   भी   न   फिर   आगे   बढ़ा   सके क़दमों   में   उस   ने   डाल दी   बेड़ी , पुकार   के हो   ही   चुका   ये   इम्तेहाँ , मर   ही   चुका   ज़मीर    अब   क्या   मिलेगा   ज़ख़्मी   तमन्ना   को   मार   के दानिस्ता   हम   ने   उस   को   जिताया   है   ये   भी   दांव " मुमताज़ " हम   तो   उस   को   भी   आए   हैं   हार   के फ़रार = भागना , उरूसी = लाल रंग का , चार सू = चारों तरफ़ , खिज़ा

दुनिया की हम को फ़िक्र, न सूद ओ ज़ियाँ की है

दुनिया   की   हम   को   फ़िक्र ,   न सूद   ओ   ज़ियाँ की   है हम   को   तो   बस   तलाश   तेरे   आस्तां   की   है झटके   में   जिस   ने   तोड़ी   है   ज़ंजीर   पाँव   की ये   जुरअत   ए   निजात   इसी   नातवाँ   की   है जिस   की   शिकस्ता पाई   को   ठुकरा   गए   थे   तुम अब   क्यूँ   तुम्हें   तलाश   उसी   बेनिशाँ   की   है फूँका   जो   बर्क़ - ए - वहम   ने , गुलशन   वफ़ा   का   था जो   ख़ाक   बच   गई   है , मेरे   आशियाँ   की   है कहते      हैं    दिल    की   बात   इशारों   में   हम   भी   यूँ फ़रियाद   है   फ़लाँ   की , शिकायत   फ़लाँ   की   है सरहद   यहीं   तलक   है   दयार   ए   यक़ीन   की मंज़िल   फिर   इस   के   बाद   तो   वहम   ओ   गुमाँ   की   है जोश   ए   जूनून होश   में   आने   लगा   है   फिर ' मुमताज़ ' अब   संभल , के   घडी   इम्तेहाँ की   है دنیا   کی   ہم   کو   فکر   نہ   صود و   ضیاں   کی   ہے ہم   کو   تو   بس   تلاش   ترے   آستاں    کی   ہے جھٹکے   میں   جس   نے   توڑی    ہے   زنجیر   پاؤں   کی یہ