नज़्म – जीत
जो हौसला बलंद है नफ़स नफ़स कमंद है हमारी हर ख़ुशी हमारे हौसलों में बंद है वो बेकसी अतीत है यही हमारी जीत है हर एक देशवासी के लबों पे ये ही गीत है ये एकता मिसाल है हमारा ये कमाल है वतन के लब पे आज भी मगर वही सवाल है है कौन दूध का धुला अभी तलक नहीं खुला अभी तक इस पियाले में जहर का घूंट है घुला भरें सभी तिजोरियाँ हैं कैसी कैसी चोरियाँ सुला रहे हैं हम ज़मीर को सुना के लोरियाँ उठो , कि वक़्त आ गया बढ़ाओ हर कदम नया ज़रा तो तुम भी सोच लो कि फ़र्ज़ है तुम्हारा क्या ज़रा तो ख़ुद में झांक लो ज़मीर को भी आंक लो फ़रीज़े की जबीन पर कोई सितारा टाँक लो ये छोटी छोटी चोरियाँ जो जुर्म की हैं बोरियाँ हमारे मुल्क के लिए बनी हैं जो निंबोरियाँ इन्हें भी अब मिटाएँगे ख़ुदी को आज़माएँगे कि हाथ यूँ बढ़ाएँगे ज़मीर को जगाएँगे खिलाना है नया चमन बनाना है नया वतन बदल दें आओ मिल के हम समाज के सभी चलन न भेद ज़ात पाँत का न धर्म का न ज़ात का जवाब हम को देना है सदी सदी की बात का यही हमारी जीत है यही तो भारी जीत है बुराइयों की हार में