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ज़िन्दगी मेरे लिए हो गई बोहताँ जानाँ

  ज़िन्दगी मेरे लिए हो गई बोहताँ जानाँ मुझ पे कितना है बड़ा ये तेरा एहसाँ जानाँ तेरे वादे , तेरी क़समें तेरी उल्फ़त , तेरा दिल हर हक़ीक़त है मेरे सामने उरियाँ जानाँ इस कहानी में मेरे ख़ूँ की महक शामिल है और तेरा नाम है अफ़साने का उनवाँ जानाँ दिल पे इक अब्र सा छाया था न जाने कब से आज तो टूट के बरसा है ये बाराँ जानाँ इक वही बात जो कानों में कही थी तू ने दिल अभी तक है उसी बात का ख़्वाहाँ जानाँ अब तो ता दूर कहीं कोई नहीं राह-ए-फ़रार खोल दे अब तो मेरे पाँव से जौलाँ जानाँ बाद अज़ इसके बहुत तंग है जीना लेकिन फ़ैसला तर्क-ए-तअल्लुक़ का है आसाँ जानाँ पहले दिल ज़ख़्मी था , अब रूह तलक ज़ख़्मी है तू ने क्या ख़ूब किया है मेरा दरमाँ जानाँ अब यहाँ आ के जुदा होती हैं राहें अपनी अब क़राबत का नहीं कोई भी इमकाँ जानाँ इश्क़ में अब वो जुनूँ है न वफ़ा में वो ग़ुरूर अब ये शै दुनिया में “ मुमताज़ ” है अर्ज़ाँ जानाँ बोहताँ-झूठा इल्ज़ाम , उरियाँ-नग्न , उनवाँ-शीर्षक , अब्र-बादल , बाराँ-बारिश , ख़्वाहाँ-इच्छुक , राह-ए-फ़रार-भागने का रास्ता , जौलाँ-बेड़ी , तर्क-ए-तअल

नज़्म-चाहत

  तुम्हारी आरज़ू में रंग भरना चाहती हूँ मैं तुम्हें जी भर के जानाँ प्यार करना चाहती हूँ मैं ये लंबा फ़ासला आख़िर मुझे कैसे गवारा हो तुम्हारी वहशतों को कुछ मेरे दिल का सहारा हो समेटूँ अपने दामन में तुम्हारे दिल के सन्नाटे निगाहों से मैं चुन लूँ सब तुम्हारी राह के काँटे मेरी हर जुस्तजू तुम से शुरू हो , खत्म तुम पर हो तुम्ही हो ज़िन्दगी मेरी तुम्ही मेरे मुक़द्दर हो तुम्हारे काम न आए तो मेरी ज़िन्दगी क्या है हर इक सजदा मेरा बेकार है ये बंदगी क्या है ख़ुशी ले लो मेरी मुझ को तुम अपने सारे ग़म दे दो मुझे इतनी जगह तो अपने दिल में कम से कम दे दो

गीत- इक बार ज़रा

माना कि हमारे बीच में अब वो प्यार का पागलपन न रहा वो इन्द्रधनुष से दिन न रहे , वो सपनों का सावन न रहा पर दिल कि अधूरी आस है ये तुम आ जाओ इक बार ज़रा वो प्यार नहीं , तक़रार सही उल्फ़त न सही व्यापार सही राहत न सही उलझन ही सही बेचैन सी इक धड़कन ही सही खुशियाँ न सही आँसू ही सही दे जाओ कोई ग़म का तोहफ़ा मेरी सुबहें अंधेरी हैं तुम बिन मेरा हर इक ख़्वाब अधूरा है हर एक सवाल सवाली है हर एक जवाब अधूरा है हर आस मिटे , विश्वास मिटे दे जाओ मुझे उल्फ़त की सज़ा देखो तो हमारी रंजिश पर अब हँसते हैं दुनिया वाले उल्फ़त की तबाही पर ताने अब कसते हैं दुनिया वाले बदनामी की इस आग को अब दे जाओ थोड़ी और हवा

कभी रुके तो कभी उठ के बेक़रार चले

कभी रुके तो कभी उठ के बेक़रार चले जो ले के हाथ में हसरत का तार तार चले کبھی رکے تو کبھی اٹھ کے بیقرار چلے جو لے کے ہاتھ میں حسرت کا تار تار چلے निसार हों मह-ओ-ख़ुर्शीद उसकी हस्ती पर नज़र से उसकी थमे और कभी बहार चले نثار ہو مہ و خورشید اس کی ہستی پر مظر سے اس کی تھمے اور کبھی بہار چلے उठाए फिरते थे सीने पे एक मुद्दत से हयात आज तेरा क़र्ज़ हम उतार चले اٹھائے پھرتے تھے سینے پہ ایک مدت سے حیات آج ترا قرض ہم اتار چلے सबा ने चूम लिए बढ़ के नक़्श-ए-पा अपने उसी दयार की जानिब जो बेक़रार चले سبا نے چوم لئے بڑھ کے نقشِ پا اپنے اسی دیار کی جانب جو بیقرار چلے गराँ गुज़रती है “ मुमताज़ ” दिल पे जो अक्सर वो बात महफ़िल-ए-याराँ में बार बार चले گراں گذرتی ہے ممتازؔ دل پہ جو اکثر وہ بات محفلِ یاراں میں بار بار چلے

सच

आरज़ूओं का हर ख़्वाब झूटा آرزؤں کا ہر خواب جھوٹا झूटा ख़ुर्शीद महताब झूटा جھوٹا خورشید مہتاب جھوٹا ये ज़माने की रफ़्तार झूठी یہ زمانے کی رفتار جھوٹی सुबह झूठी , शब-ए-तार झूठी صبح جھوٹی، شبِ تار جھوٹی प्यार की हर कहानी भी झूठी پیار کی ہر کہانی بھی جھوٹی मेरी जलती जवानी भी झूठी میری جلتی جوانی بھی جھوٹی ये लचक मेरे बालों की झूठी یہ لچک میرے بالوں کی جھوٹی रौशनी मेरे गालों की झूठी روشنی میرے گالوں کی جھوٹی ये निगाहों की मस्ती भी झूठी یہ نگاہوں کی مستی بھی جھوٹٰی मेरा दिल मेरी हस्ती भी झूठी میرا دل میری ہستی بھی جھوٹی रिश्तों नातों का ब्योपार झूटा رشتوں ناطوں کا بیوپار جھوٹا अब लगे सारा संसार झूटा اب لگے سارا سنسار جھوٹا एक सच्चा तेरा प्यार सजना ایک سچا ترا پیار سجنا तेरी बाहें मेरा हार सजना تیری باہیں میرا ہار سجنا

मेरे महबूब

मेरे महबूब , मेरी जान , मेरे होश रुबा میرے محبوب، مری جان، میرے ہوش ربا तेरी उल्फ़त ही मेरी ज़ात का सरमाया है تیری الفت ہی میری ذات کا سرمایہ ہے मेरी हर साँस तेरी साँस से मन्सूब हुई میری ہر سانس تیری سانس سے منصوب ہوئی मेरी धड़कन पे , मेरे दिल पे तेरा साया है میری دھڑکن پہ میرے دل پہ ترا سایہ ہے जाने कब आया मेरी ज़ीस्त में चुपके चुपके جانے کب آیا میری زیست میں چپکے چپکے जाने कब तू मेरे जीने का सबब बन बैठा جانے کب تو مرے مرنے کا سبب بن بیٹھا मेरे एहसास के हर गोशे पे क़ाबिज़ हो कर میرے احساس کے ہر گوشے پہ قابض ہو کر तेरा एहसास मेरा रख़्त-ए-तरब बन बैठा تیرا احساس میرا رختِ طرب بن بیٹھا सोचती हूँ , मेरी दुनिया में अगर तू न हुआ سوچتی ہوں مری دنیا میں اگر تو نہ ہوا इस तसव्वर से मेरी रूह लरज़ उठती है اس تصور سے میری روح لرز اٹھتی ہے दिल पे इक ख़ौफ़ सा तारी है न जाने क्यूँ अब دل پہ اک خوف سا طاری ہے نہ جانے کیوں اب जाने क्यूँ उल्फ़त-ए-मजरूह लरज़ उठती है جانے کیوں الفتِ مجروح لرز اٹھتی ہے मेरे जीने के लिए ज़ात तेरी लाज़िम है میرے جی

रिश्तों का ये राज़ भी कितना गहरा लगता है

रिश्तों का ये राज़ भी कितना गहरा लगता है दर्द-ओ-अलम का हर अफ़साना अपना लगता है رشتوں کا یہ راز بھی کتنا گہرا لگتا ہے درد و الم کا ہر افسانہ اپنا لگتا ہے चोट कोई खाई है उसने ऐसा लगता है आज तो बदला बदला उसका लहजा लगता है چوٹ کوئی کھائی ہے اس نے ائیسا لگتا ہے آج تو بدلا بدلا اس کا لہجہ لگتا ہے खेल रहा है जो ग़ुरबत की गोद में हसरत से ये तो किसी के दिल का कोई टुकड़ा लगता है کھیل رہا ہے جو غربت کی گود میں حسرت سے یہ تو کسی کے دل کا کوئی ٹکڑا لگتا ہے ये वहशत , ये बेचैनी , ये दर्द तो मेरा है रंग तुम्हारे चेहरे का क्यूँ फीका लगता है یہ وحشت، یہ بیچینی، یہ درد تو میرا ہے رنگ تمہارے چہرے کا کیوں پھیکا لگتا ہے शब की सियाही ने क्या इसको भी रंग डाला है ? आज सहर का रंग भी कितना काला लगता है شب کی سیاہی نے کیا اس کو بھی رنگ ڈالا ہے آج سحر کا رنگ بھی کتنا کالا لگتا ہے हर लब पर फिर हैरत के ताले पड़ जाते हैं नहले पर “ मुमताज़ ” कभी जब दहला लगता है ہر لب پر پھر نفرت کے تالے پڑ جاتے ہیں نہلے پر ممتازؔ کبھی جب دہلا لگتا ہے