Posts

ग़ज़ल - जागती आँखों में उतरा रूह के अंदर गया

जागती आँखों में उतरा , रूह के अंदर गया फिर वही एहसास इस दिल को मुनव्वर कर गया किस क़दर तारीक मेरे ज़हन-ओ-दिल को कर गया ज़ीस्त से मेरी हमेशा के लिए ख़ावर गया उलझनें , राहत , सुकूँ , बेचैनियाँ , रानाइयाँ दिल एक इक सादा वरक़ पर रंग कितने भर गया इस तज़ाद-ए-ज़हन ने क्या क्या सताया है हमें जिस गली से था गुरेज़ाँ , दिल वहीं अक्सर गया वक़्त-ए-रुख़सत वो ख़मोशी और वो हसरत की नज़र दिल पे इक संग-ए-गराँ वो बेवफ़ा फिर धर गया हो गया था कल गुज़र यादों के क़ब्रस्तान से इस बला का शोर था , बेसाख़्ता दिल डर गया अजनबी कोई मुसाफ़िर जैसे गुज़रे राह से मेरे पहलू से वो इस अंदाज़ से उठ कर गया फिर भी ख़ाली ही रहा दामन मुरादों से मगर इस जहान-ए-आरज़ू में दिल मेरा दर दर गया सी लिए थे मैं ने तो “ मुमताज़ ” अपने लब तलक इसलिए शायद हर इक इल्ज़ाम मेरे सर गया मुनव्वर – रौशन , तारीक – अंधेरा , ज़ीस्त – ज़िन्दगी , ख़ावर – सूरज , रानाइयाँ – रौनक़ , वरक़ – पन्ना , तज़ाद – विपरीत बातें , संग-ए-गराँ – भारी पत्थर 

नात - करम करम या शाहे मदीना (2004 में रेकॉर्ड हुई )

रंज-ओ-अलम से चूर है सीना मुश्किल है अब मेरा जीना करम करम या शाह-ए-मदीना है सर पे बलाओं का साया जीने से दिल है घबराया वो दर्द का आलम है आक़ा जीने से भी दिल उकताया तारीकी ही तारीकी हर सू , आती नहीं कोई राह नज़र   फ़रियाद ये ले कर आए हैं सरकार तुम्हारी चौखट पर अब तुम न सुनोगे तो आक़ा फिर कौन सुनेगा हाल-ए-अलम तुम से ही सवाल है रहमत का या रहमत-ए-आलम कर दो करम अब बहर-ए-ख़ुदा ग़म दूर करो बस रौशन कर दो मेरा सीना करम करम या शाह-ए-मदीना आसार-ए-क़यामत है हर सू है आपकी उम्मत ख़तरे में है कुफ़्र की गहरी तारीकी छाई हुई ज़र्रे ज़र्रे में उस ओर बसफ़ है सारा जहाँ इस ओर मदद को कोई नहीं अल्लाह भी शायद रूठा है , हामी नहीं , पैरो कोई नहीं अब तुम ही कोई इमदाद करो हो तुम ही तो हादी उम्मत के सरकार न ऐसे मुँह फेरो , हो आप समंदर रहमत के अब तुम ही सिपहसालार बनो और आज मिटा दो ज़ुल्म का क़ीना करम करम या शाह-ए-मदीना फिर एक दफ़आ तकबीर का नारा सारे जहाँ में गूंज उठे फिर एक दफ़आ तौहीद का कलमा कौन-ओ-मकाँ में गूँज उठे फिर पहला ज़माना आ जाए तारीख़ वो ख़ुद को दोहराए फिर ग़ाज़ी-ओ-शुहद

एक पुरानी हम्द - अल्लाहू हक़ अल्लाहू

हम्द के लायक़ तेरी ही ज़ात   दुनिया पे ज़ाहिर तेरी सिफ़ात   वह्दहू ला शरीक लहू   अल्लाहू हक़ अल्लाहू कुल आलम-ए-जहाँ में तेरी ही रंग-ओ-बू है   हर डाल ख़ुशनुमा है , हर फूल सुर्ख़रू है   ख़ुर्शीद-ओ-माह रौशन तेरी ही रौशनी से   पाया वजूद सबने तेरी मुसव्विरी से   तेरा ज़िक्र है मेरी हयात   सजदे में दिल है दिन रात   वह्दहू ला शरीक लहू   अल्लाहू हक़ अल्लाहू चाहत न सीम-ओ-ज़र की चाहूँ न तख़्त-ए-शाही   चाहूँ मैं तेरी क़ुर्बत , तेरी रज़ा इलाही   तेरे सिवा किसी पर मुझ को नहीं भरोसा तेरे हुस्न की हूँ आशिक़ तेरी राह की हूँ राही तेरा अक्स जब इतना हसीं क्या हो बयाँ तेरी दीद की बात वह्दहू ला शरीक लहू   अल्लाहू हक़ अल्लाहू कोई कहे कि तेरी है ज़ात सब से आला कोई कहे कि तेरा मस्कन है ये शिवाला किस बात का है झगड़ा , किस बात पर बहस है कण कण में तेरा जल्वा , तेरा हर जगह उजाला रज़्ज़ाक़ी तेरी सबके लिए कोई धरम हो कोई हो ज़ात वह्दहू ला शरीक लहू   अल्लाहू हक़ अल्लाहू मेरी क्या बिसात आक़ा कि मैं तेरी हम्द गाऊँ तौफ़ीक़ तू ही दे दे तो कर के कुछ दिखाऊँ मुझे तूने ही बनाया

ham se mat kijiye dushmanon ka gila

Image

nae saal ki pahli ghazalतारीकी में अनवार-ए-हुदा दें तो किसे दें

तारीकी में अनवार-ए-हुदा दें तो किसे दें हम अपने ख़यालों की ज़िया दें तो किसे दें हर आँख पे मग़रूर शुआओं का है पर्दा हम राह के ख़ारों का पता दें तो किसे दें चेहरों पे कई चेहरे लगाए हैं यहाँ लोग हैरान हैं हम, दाद-ए-जफ़ा दें तो किसे दें अरमानों का खूँ रंग अगर लाए तो कैसे अरमानों का हम ख़ूनबहा दें तो किसे दें ये पेच जो रिश्तों में हैं , सुलझाए भला कौन इस उलझे तअल्लुक़ का सिरा दें तो किसे दें बेकार भला झेलेगा ख़्वाबों की चुभन कौन ये जलता हुआ ख़्वाबनुमा दें तो किसे दें रास आएगी "मुमताज़" किसे दर्द की इशरत ज़ख्मों की ये रंगीन क़बा दें तो किसे दें

adaawat hi sahi

यास ये मेरी ज़रूरत ही सही बेक़रारी मेरी आदत ही सही घर से हम जैसों को निस्बत कैसी सर पे नीली सी खुली छत ही सही न सही वस्ल की इशरत न सही गिरया ओ यास की लज़्ज़त ही सही बर्क़ को ख़ैर मुबारक गुलशन आशियाँ से हमें हिजरत ही सही हम ने हर तौर निबाही है वफ़ा न सही इश्क़ , इबादत ही सही राब्ता कुछ तो है लाज़िम उनसे “ कुछ नहीं है तो अदावत ही सही ” हाकिमों की है इनायत “ मुमताज़ ” हमको इफ़लास की इशरत ही सही 

Har taraf shor hai har taraf hai fughaan

Image