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ग़ज़ल - तश्नगी को तो सराबों से भी छल सकते थे

तश्नगी को   तो   सराबों   से   भी   छल   सकते  थे   इक   इनायत   से  मेरे   ख़्वाब   बहल   सकते  थे   तुम   ने   चाहा   ही   नहीं   वर्ना कभी   तो  जानां   मेरे  टूटे   हुए   अरमाँ भी  निकल   सकते  थे   तुम  को  जाना   था   किसी   और   ही  जानिब , माना   दो   क़दम   फिर   भी  मेरे  साथ   तो  चल   सकते  थे   काविशों   में   ही  कहीं   कोई   कमी   थी  , वर्ना   ये   इरादे   मेरी   क़िस्मत   भी  बदल   सकते  थे   रास   आ   जाता   अगर   हम   को  अना   का   सौदा   ख़्वाब  आँखों   के   हक़ीक़त में  भी  ढल   सकते  थे   हम  को  अपनी   जो   अना  का  न   सहारा   मिलता   लडखडाए   थे  क़दम  यूँ  , के  फिसल   सकते  थे   इस   क़दर   सर्द   न  होती   जो  अगर  दिल   की   फ़ज़ा   आरज़ूओं   के  ये  अशजार भी  फल   सकते  थे   ये  तो  अच्छा   ही  हुआ  , बुझ   गई   एहसास   की  आग   वर्ना  आँखों  में  सजे   ख़्वाब  भी  जल   सकते  थे   हार   बैठे   थे  तुम्हीं   हौसला   इक  लग्ज़िश में   हम  तो   ' मुमताज़  ' फिसल  कर   भी  संभल   सकते   थे   تشنگ

ग़ज़ल - तड़प को हमनवा रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो

तड़प को हमनवा रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो ज़रा कुछ देर को माज़ी से भी कुछ सिलसिला कर लो सियाही जो निगल डाले सरासर रौशनी को भी तो फिर हक़ है कहाँ , बातिल है क्या , ख़ुद फ़ैसला कर लो इबादत नामुकम्मल है , अधूरा है हर इक सजदा असास-ए-ज़हन-ओ-दिल को भी न जब तक मुब्तिला कर लो थकन को पाँव की बेड़ी बना लेने से क्या होगा सफ़र आसान हो जाएगा थोड़ा हौसला कर लो बलन्दी भी झुकेगी हौसले के सामने बेशक जो ख़ू परवाज़ को काविश को अपना मशग़ला कर लो ज़माने भर से नालाँ हो , शिकायत है ख़ुदा से भी कभी “ मुमताज़ ” अपने आप से भी तो गिला कर लो تڑپ  کو  ہمنوا  روح  و  بطن  کو  کربلا  کر  لو   ذرا  کچھ  دیر  کو  ماضی  سے  بھی  کچھ  سلسلہ  کر  لو   سیاہی  جو  نگل  جاے  سراسر  روشنی  کو  بھی   تو  پھر  حق  ہے  کہاں  باطل  ہے  کیا  خود  فیصلہ  کر  لو   عبادت  نامکمّل  ہے , ادھورا  ہے  ہر  اک سجدہ   اساس  ذہن  و  دل  کو  بھی  نہ  جب  تک  مبتلا  کر  لو   تھکن  کو  پاؤں  کی  بیڑی  بنا  لینے  سے  کیا  ہوگا   سفر  آسان  ہو  جائگا , تھوڑا   حوصلہ  کر  لو   بلندی  بھی  جھکیگی  ح

तरही ग़ज़ल - ये शिद्दत तश्नगी की बढ़ रही है अश्क पीने से

  ये शिद्दत तश्नगी की बढ़ रही है अश्क पीने से हमें वहशत सी अब होने लगी मर मर के जीने से बड़ी तल्ख़ी है लेकिन इस में नश्शा भी निराला है हमें मत रोक साक़ी ज़िन्दगी के जाम पीने से हर इक हसरत को तोड़े जा रहे हैं रेज़ा रेज़ा हम उतर जाए ये बार-ए-आरज़ू शायद कि सीने से अभी तक ये फ़सादों की गवाही देती रहती है लहू की बू अभी तक आती रहती है खज़ीने से बिखर जाएगा सोना इस ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे पर ये मिटटी जगमगा उठ्ठेगी मेहनत के पसीने से हमारे दिल के शो ' लों से पियाला जल उठा शायद लपट सी उठ रही है आज ये क्यूँ आबगीने से ये जब बेदार होते हैं , निगल जाते हैं खुशियों को ख़लिश के अज़दहे लिपटे हैं माज़ी के दफीने से मचलती मौजों पे हम तो जुनूं को आज़माएंगे " जिसे साहिल की हसरत हो , उतर जाए सफ़ीने से" हमें तो ज़िंदगी ने हर तरह आबाद रक्खा है तो क्यूँ ' मुमताज़ ' अब लगने लगा है ख़ौफ जीने से आबगीने – काँच का ग्लास , बेदार – जागना , बार – बोझ 

ग़ज़ल - जल्वा था कि इक तूर-ए-दरख़्शाँ था अयाँ

जल्वा था कि इक तूर-ए-दरख़्शाँ था अयाँ नज़रों को संभालें ये रहा होश कहाँ JALWA THA KE IK TOOR E DARAKHSHAA'N THA AYAA'N NAZARO'N KO SAMBHAALE'N YE RAHA HOSH KAHA'N हसरत न कोई ख़्वाब न अब दर्द-ए-निहाँ बाक़ी न रहा ज़ीस्त का कोई इमकाँ HASRAT NA KOI KHWAAB NA AB DARD E NIHAA'N BAAQI NA ZEEST KA KOI IMAKAA'N इस राह से गुज़री थी वो ज़ौबार किरन हर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है अभी तक ताबाँ IS RAAH SE GUZRI THI WO ZOU BAAR KIRAN HAR NAQSH E KAF E PAA HAI ABHI TAK TAABA'N उल्फ़त का गुज़र दिल के सियहख़ाने से ये ज़ीस्त की राहों में तजल्ली का गुमाँ ULFAT KA GUZAR DIL KE SIYAHKHAANE SE YE ZEEST KI RAAHO'N ME'N TAJALLI KA GUMAA'N भीगी हुई रहती है सदा दिल की ज़मीं बारिश से धुला करता है हर दाग़ यहाँ BHEEGI HUI REHTI HAI SADAA DIL KI ZAMEE'N BAARISH SE DHULA KARTA HAI HAR DAAGH YAHA'N ख़ुर्शीद की किरनों ने छुआ बढ़ के ज़रा बिखरी है समंदर की सतह पर अफ़शाँ KHURSHEED KI KIRNO'N NE CHHUAA BADH KE ZARA BIKHRI HAI SAMANDAR KI

तरही ग़ज़ल - कहाँ तक न जाने मैं आ गई

कहाँ तक न जाने मैं आ गई गुम रात दिन के शुमार में कहीं क़ाफ़िला भी वो खो गया इन्हीं गर्दिशों के ग़ुबार में KAHA'N TAK NA JAANE MAI'N AA GAI, GUM RAAT DIN KE SHUMAAR ME'N KAHI'N QAAFILAA BHI WO KHO GAYA , INHI'N GARDISHO'N KE GHUBAAR ME'N न कोई रफ़ीक़ , न आशना , न अदू , न कोई रक़ीब है मैं हूँ कब से तन्हा खड़ी हुई इस अना के तंग हिसार में NA KOI RAFEEQ NA AASHNA, NA ADOO NA KOI RAQEEB HAI MAI'N HOO'N KAB SE TANHAA KHADI HUI, IS ANAA KE TANG HISAAR ME'N है अजीब फ़ितरत-ए-बेकराँ कि सुकूँ का कोई नहीं निशाँ कभी शादमाँ हूँ गिरफ़्त में कभी मुंतशिर हूँ फ़रार में HAI AJEEB FITRAT E BEKARAA'N KE SUKO'N KA KOI NISHAA'N NAHI'N KABHI SHAADNAA'N HOO'N GIRAFT ME'N, KABHI MUNTASHIR HOO'N FARAAR ME'N वो शब-ए-सियाह गुज़र गई मेरी ज़िन्दगी तो ठहर गई है अजीब सी कोई बेकली कोई कश्मकश है क़रार में WO SHAB E SIYAAH GUZAR GAI, MERI ZINDAGI TO THEHER GAI HAI AJEEB SI KOI BEKALI, KOI KASH MA KASH HAI QARAAR ME'N

तरही ग़ज़ल - फिर बहारों को ख़्वाब देती हूँ

लग़्ज़िशों को शबाब देती हूँ फिर बहारों को ख़्वाब देती हूँ LAGHZISHO'N KO SHABAAB DETI HOO'N PHIR BAHAARO'N KO KHWAAB DETI HOO'N ख़ुद को यूँ भी अज़ाब देती हूँ आरज़ू का सराब देती हूँ KHUD KO YU'N BHI AZAAB DETI HOO'N AARZOO KA SARAAB DETI HOO'N वक़्त-ए-रफ़्ता के हाथ में अक्सर ज़िन्दगी की किताब देती हूँ WAQT E RAFTA KE HAATH ME'N AKSAR ZINDAGI KI KITAAB DETI HOO'N सी के लब ख़ामुशी के धागों से हसरतों को अज़ाब देती हूँ SEE KE LAB KHAAMUSHI KI DHAAGO'N SE HASRATO'N KO AZAAB DETI HOO'N जी रही हूँ बस एक लम्हे में इक सदी का हिसाब देती हूँ JEE RAHI HOO'N BAS EK LAMHE ME'N IK SADI KA HISAAB DETI HOO'N ज़ुल्म सह कर भी मुतमइन हूँ मैं ज़िन्दगी को जवाब देती हूँ ZULM SEH KAR BHI MUTMAIN HOO'N MAI'N ZINDAGI KO JAWAAB DETI HOO'N बाल-ओ-पर की हर एक फड़कन को हौसला ? जी जनाब , देती हूँ BAAL O PAR KI HAR EK PHADKAN KO HAUSLA? JEE JANAAB, DETI HOO'N यादगार-ए-शिकस्त-ए-दिल भी तो

ग़ज़ल - हर हरकत में लाखों तूफ़ाँ, हर जुम्बिश में इक हंगाम

हर हरकत में लाखों तूफ़ाँ , हर जुम्बिश में इक हंगाम मेरे इस बेख़ौफ़ जुनूँ का जाने क्या होगा अंजाम har harkat meN laakhoN toofaaN har jumbish meN ik hangaam mere is bekhauf junooN ka jaane kya hoga anjaam दरियादिली का इस दुनिया में मिलता है ये ही इनआम आग लगा दी छाँव को इस ने , धूप के सर पर है इल्ज़ाम dariya dili ka is aalam meN milta hai ye hi in'aam aag laga di chaanv ko is ne dhoop ke sar pe hai ilzaam दिल में ख़ज़ाने , आँख में मोती , लेकिन दामन फिर भी तही बस इतनी क़िस्मत है अपनी , ख़ाली मीना , ख़ाली जाम dil meN khazaane aankh men moti, lekin daaman phir bhi tahee bas itni qismat hai apni, khaali meena, khaali jaam कुछ अपनी रफ़्तार बढ़ाओ , जोश को कुछ तुग़ियानी दो मंज़िल कितनी दूर अभी है और घिरी आती है शाम kuchh apni raftaar badhaao, josh ko kuchh tughyaani do manzil kitni door abhi hai aur ghiri aati hai shaam सारी उम्र की कीमत पर भी क़र्ज़ न उतरा रिश्तों का बेचैनी , ज़िल्लत , रुसवाई , हम को मिला है ये इनआम saari umr ki qeemat par bhi qarz na