Posts

ग़ज़ल - शब का इक एक पल पिघलता है

शब का इक एक पल पिघलता है जब भी सूरज नया निकलता है SHAB KA IK EK PAL PIGHALTA HAI JAB BHI SOORAJ NAYA NIKALTA HAI जब भी माज़ी का जायज़ा लीजे ज़हन का कोना कोना जलता है JAB BHI MAAZI KA JAAIZA LIJE ZEHN KA KONA KONA JALTA HAI मिलना अहबाब से तो दूर , अब तो ज़िक्र भी दोस्तों का खलता है MILNA EHBAAB SE TO DOOR, AB TO ZIKR BHI DOSTON KA KHALTA HAI अब करें क्या हयात की सूरत ज़हन में इक सवाल उबलता है AB KAREN KYA HAYAAT KI SOORAT IK ZEHN MEN SAWAAL UBALTA HAI वो मक़ाम आ गया जहाँ से अब अपना हर रास्ता बदलता है WO MAQAAM AA GAYA JAHAN SE AB APNA HAR RAASTA BADALTA HAI हर ख़ुशी , हर तमन्ना , हर जज़्बा दिल को सूरत बदल के छलता है HAR KHUSHI, HAR TAMANNA, HAR JAZBA DIL KO SOORAT BADAL KE CHHALTA HAI सिर्फ़ शम ’ अ नहीं अब इस घर में रात भर दिल भी साथ जलता है IK SHAMA'A HI NAHIN AB IS GHAR MEN RAAT BHAR DIL BHI SAATH JALTA HAI बारहा टूट कर भी दिल वो है फिर धड़कता है , फिर मचलता है BAARHAA TOOT KAR BHI DIL WO HAI PHIR DHADAKTA HAI

ग़ज़ल - ये बोझ ज़हन पे रक्खा है मसअले की तरह

ये बोझ ज़हन पे रक्खा है मसअले की तरह ज़मीर जागता रहता है आईने की तरह YE BOJH ZEHN PE RAKHA HAI MAS'ALE KI TARAH ZAMEER JAAGTA REHTA HAI AAINE KI TARAH था लेन देन का सौदा , हज़ार शर्तें थीं किया था इश्क़ भी हमने मुआहिदे की तरह THA LEN DEN KA SAUDA, HAZAAR SHARTE'N THI'N KIYA THA ISHQ BHI HAM NE MUAAHIDE KI TARAH बहुत सुकून में वहशत सी होने लगती है हमें तो दर्द-ओ-अलम भी है मशग़ले की तरह BAHOT SUKOON ME'N WEHSHAT SI HONE LAGTI HAI HAME'N TO DARD O ALAM BHI HAI MASHGHALE KI TARAH ज़रा जो वक़्त मिला तो इधर भी देख लिया तेरी हयात में हम थे , प हाशिये की तरह ZARA JO WAQT MILA TO IDHAR BHI DEKH LIYA TERI HAYAAT ME'N HAM THE, PA HAASHIYE KI TARAH करे सलाम भी एहसान की तरह अक्सर हमारा हाल भी पूछे तो वो गिले की तरह KARE SALAM BHI EHSAAN KI TARAH AKSAR HAMARA HAAL BHI POOCHHE TO WO GILE KI TARAH हमेशा लड़ते रहे वक़्त के थपेड़ों से हयात सारी की सारी थी ज़लज़ले की तरह HAMESHA LADTE RAHE WAQT KE THAPEDO'N SE HAYAAT SAARI KI SAA

ग़ज़ल - कोई हिकमत न चली, कोई भी दरमाँ न चला

कोई हिकमत न चली , कोई भी दरमाँ न चला पुर नहीं होता किसी तौर मेरे दिल का ख़ला KOI HIKMAT NA CHALI KOI BHI DARMAA'N NA CHALA PUR NAHIN HOTA KISI TAUR MERE DIL KA KHALAA तो तमन्नाओं की क़ुर्बानी भी काम आ ही गई सुर्ख़रू हो के चलो आज का सूरज भी ढला TO TAMANNAO'N KI QURBAANI BHI KAAM AA HI GAI SURKHROO HO KE CHALO AAJ KA SOORAJ BHI DHALAA मुंतज़िर घड़ियों की राहें जो हुईं लामहदूद लम्हा लम्हा था तवील इतना कि टाले न टला MUNTAZIR GHADIYO'N KI RAAHE'N JO HUI'N LAAMEHDOOD LAMHAA LAMHAA THA TAWEEL ITNA KE TAALE NA TALAA आज भी हम ने तुझे याद किया है जानम दिल के ज़ख़्मों पे नमक आज भी जी भर के मला AAJ BHI HAM NE TUJHE YAAD KIYA HAI JAANAM DIL KE ZAKHMO'N PE NAMAK AAJ BHI JEE BHAR KE MALAA अब हुकूमत में अना की तो यही होना था दिल को बहलाया बहुत , ख़ूब तमन्ना को छला AB HUKOOMAT ME'N ANAA KI O YAHI HONA THA DIL KO BEHLAAYA BAHOT, KHOOB TAMANNA KO CHHALAA तश्नगी का ये सफ़र और कहाँ ले जाता मुझ को ले आया सराबों में मेरा कर्ब-ओ-बला

ग़ज़ल - दिन ज़िन्दगी के हमने गुज़ारे कुछ इस तरह

रक्खे हों दिल पे जैसे शरारे , कुछ इस तरह दिन ज़िन्दगी के हमने गुज़ारे कुछ इस तरह RAKKHE HO'N DIL PE JAISE SHARAARE, KUCHH IS TARAH DIN ZINDGI KE HAM NE GUZAARE KUCHH IS TARAH हस्ती है तार तार , तमन्ना लहू लहू हम ज़िन्दगी की जंग में हारे कुछ इस तरह HASTI HAI TAAR TAAR, TAMANNA LAHOO LAHOO HAM ZINDGI KI JUNG ME'N HAARE KUCHH IS TARAH मिज़गाँ से जैसे टूट के आँसू टपक पड़े टूटे फ़लक से आज सितारे कुछ इस तरह MIZGAA'N SE JAISE TOOT KE AANSOO TAPAK PADE TOOTE FALAK SE AAJ SITAARE KUCHH IS TARAH हसरत , उम्मीद , ख़्वाब , वफ़ा , कुछ न बच सका बिखरे मेरे वजूद के पारे कुछ इस तरह HASRAT, UMMEED, KHWAAB, WAFAA, KUCHH NA BACH SAKA BIKHRE MERE WAJOOD KE PAARE KUCHH IS TARAH सेहरा की वुसअतों में फ़रेब-ए-सराब था करती रही हयात इशारे कुछ इस तरह SEHRA KI WUS'ATO'N ME'N FAREB E SARAAB THA KARTI RAHI HAYAAT ISHAARE KUCHH IS TARAH हम से बिछड़ के जैसे बड़ी मुश्किलों में हो माज़ी पलट के हमको पुकारे कुछ इस तरह HAM SE BICHHAD KE JAISE BADI

नज़्म - ख़िताब

ऐ मुसलमानो , है तुम से दस्त बस्ता ये ख़िताब दिल पे रख कर हाथ सोचो , फिर मुझे देना जवाब उम्मत ए मुस्लिम की हालत क्यूँ हुई इतनी ख़राब किस लिए अल्लाह ने डाला है हम पर ये अज़ाब कह रहे हैं लोग , बदतर है हमारी ज़िन्दगी पिछड़ी कौमों से भी , बदबख्तों से भी , दलितों से भी सुन के ये सब मन्तकें , इक बात ये दिल में उठी हम में ये बे चेहरगी आख़िर कहाँ से आ गई हम दलीतों से भी नीचे ? अल्लाह अल्लाह , ख़ैर हो हाय ये हालत , कि हम से किबरिया का बैर हो ? तुम वतन में रह के भी अपने वतन से ग़ैर हो अब क़दम कोई , कि अपनी भी तबीअत सैर हो कुछ तो सोचो , ज़हन पे अपने भी कुछ तो ज़ोर दो ग़ैर के हाथों में आख़िर क्यूँ तुम अपनी डोर दो अपनी इस तीर शबी को फिर सुनहरी भोर दो फिर उठो इक बार ऐसे , वक़्त को झकझोर दो ये ज़रा सोचो , कि तुम अपनी जड़ों से क्यूँ कटे मसलकों में क्यूँ जुदा हो , क्यूँ हो फ़िर्क़ों में बँटे अब तअस्सुब को समेटो , कुछ तो ये दूरी पटे यक जहत हो जाएं जो हम , तो ये तारीकी हटे हम फ़रेब ए मसलेहत हर बार खाते आए हैं मुल्क के ये रहनुमा हम को नचाते आए हैं कितने अ

नज़्म - 9/11 (नाइन इलेवन)

पल वो नौ ग्यारह के वो मजबूरीयों का सिलसिला वो क़यामतख़ेज़ मंज़र हादसा दर हादसा मौत ने लब्बैक उस दिन कितनी जानों पर कहा कौन कर सकता है आख़िर उन पलों का तजज़िया PAL WO NAU GYARAH KE WO MAJBOORIYO.N KA SILSILA  WO QAYAMAT KHEZ MANZAR HAADSA DAR HAADSA MAUT NE LABBAIK US DIN KITNI JAANO.N PAR KAHA KAUN KAR SAKTA HAI AAKHIR UN PALO.N KA TAJZIYAA हादसा कहते हैं किस शै को , बला क्या चीज़ है डूबना सैलाब-ए-आतिश में भला क्या चीज़ है मौत से आँखें मिलाने की भला हिम्मत है क्या जिन पे गुज़री थी , ये पूछो उनसे , ये दहशत है क्या HAADSA KEHTE HAIN KIS SHAY KO BALA KYA CHEEZ HAI DOOBNA SAILAAB E AATISH ME.N BHALA KYA CHEEZ HAI MAUT SE AANKHE.N MILAANE KI BHALA HIMMAT HAI KYA JIN PE GUZRI THI, YE POOCHHO UN SE, YE DEHSHAT HAI KYA पूछना है गर तो पूछो बूढ़ी माँओं से ज़रा जिन के लख़्त-ए-दिल को उन मुर्दा पलों ने खा लिया उन यतीमों से करो दरियाफ़्त , ग़म होता है क्या लम्हों में रहमत का साया जिन के सर से उठ गया POOCHHNA HAI GAR TO POOCHHO BUDHI MAAO.N SE ZARA JIN KE LAKHT E