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नज़्म - ख़िताब

ऐ मुसलमानो , है तुम से दस्त बस्ता ये ख़िताब दिल पे रख कर हाथ सोचो , फिर मुझे देना जवाब उम्मत ए मुस्लिम की हालत क्यूँ हुई इतनी ख़राब किस लिए अल्लाह ने डाला है हम पर ये अज़ाब कह रहे हैं लोग , बदतर है हमारी ज़िन्दगी पिछड़ी कौमों से भी , बदबख्तों से भी , दलितों से भी सुन के ये सब मन्तकें , इक बात ये दिल में उठी हम में ये बे चेहरगी आख़िर कहाँ से आ गई हम दलीतों से भी नीचे ? अल्लाह अल्लाह , ख़ैर हो हाय ये हालत , कि हम से किबरिया का बैर हो ? तुम वतन में रह के भी अपने वतन से ग़ैर हो अब क़दम कोई , कि अपनी भी तबीअत सैर हो कुछ तो सोचो , ज़हन पे अपने भी कुछ तो ज़ोर दो ग़ैर के हाथों में आख़िर क्यूँ तुम अपनी डोर दो अपनी इस तीर शबी को फिर सुनहरी भोर दो फिर उठो इक बार ऐसे , वक़्त को झकझोर दो ये ज़रा सोचो , कि तुम अपनी जड़ों से क्यूँ कटे मसलकों में क्यूँ जुदा हो , क्यूँ हो फ़िर्क़ों में बँटे अब तअस्सुब को समेटो , कुछ तो ये दूरी पटे यक जहत हो जाएं जो हम , तो ये तारीकी हटे हम फ़रेब ए मसलेहत हर बार खाते आए हैं मुल्क के ये रहनुमा हम को नचाते आए हैं कितने अ

नज़्म - 9/11 (नाइन इलेवन)

पल वो नौ ग्यारह के वो मजबूरीयों का सिलसिला वो क़यामतख़ेज़ मंज़र हादसा दर हादसा मौत ने लब्बैक उस दिन कितनी जानों पर कहा कौन कर सकता है आख़िर उन पलों का तजज़िया PAL WO NAU GYARAH KE WO MAJBOORIYO.N KA SILSILA  WO QAYAMAT KHEZ MANZAR HAADSA DAR HAADSA MAUT NE LABBAIK US DIN KITNI JAANO.N PAR KAHA KAUN KAR SAKTA HAI AAKHIR UN PALO.N KA TAJZIYAA हादसा कहते हैं किस शै को , बला क्या चीज़ है डूबना सैलाब-ए-आतिश में भला क्या चीज़ है मौत से आँखें मिलाने की भला हिम्मत है क्या जिन पे गुज़री थी , ये पूछो उनसे , ये दहशत है क्या HAADSA KEHTE HAIN KIS SHAY KO BALA KYA CHEEZ HAI DOOBNA SAILAAB E AATISH ME.N BHALA KYA CHEEZ HAI MAUT SE AANKHE.N MILAANE KI BHALA HIMMAT HAI KYA JIN PE GUZRI THI, YE POOCHHO UN SE, YE DEHSHAT HAI KYA पूछना है गर तो पूछो बूढ़ी माँओं से ज़रा जिन के लख़्त-ए-दिल को उन मुर्दा पलों ने खा लिया उन यतीमों से करो दरियाफ़्त , ग़म होता है क्या लम्हों में रहमत का साया जिन के सर से उठ गया POOCHHNA HAI GAR TO POOCHHO BUDHI MAAO.N SE ZARA JIN KE LAKHT E

ग़ज़ल - सनम ये बंदगी ने आज कैसे कैसे ढाले हैं

सनम ये बंदगी ने आज कैसे कैसे ढाले हैं दिलों के काबा-ओ-दैर-ओ-कलीसा तोड़ डाले हैं   SANAM YE BANDGI NE AAJ KAISE KAISE DHAALE HAI.N DILO.N KE KAABA O DAIR O KALEESA TOD DAALE HAI.N हमारी रेज़ा रेज़ा रूह के जलते सहीफ़े के हर इक बाब-ए-तमन्ना के सभी औराक़ काले हैं HAMAARI REZA REZA ROOH KE JALTE SAHEEFE KE  HAR IK BAAB E TAMANNA KE SABHI AURAAQ KAALE HAI.N हटा लो मेरी आँखों से मसर्रत के सभी मंज़र अभी बीनाई ज़ख़्मी है , अभी आँखों में छाले हैं HATA LO MERI AANKHO.N SE MASARRAT KE SABHI MANZAR ABHI BEENAAI ZAKHMI HAI ABHI AANKHO N ME.N CHHALE HAI.N न जाने किस ख़ुशी की आरज़ू में आज तक हमने हर इक वीराना छाना है , सभी सेहरा खंगाले हैं NA JAANE KIS KHUSHI KI AARZOO ME.N AAJ TAK HAM NE HAR IK VEERANA CHHANA HAI, SABHI SEHRA KHANGAALE HAI.N बिखर जाए ये शीराज़ा तो हम को भी सुकूँ आए न जाने कब से रेज़ा रेज़ा हस्ती का संभाले हैं BIKHAR JAAE YE SHEERAZA TO HAM KO BHI SUKOO.N AAEY NA JAANE KAB SE REZA REZA HASTI KA SAMBHAALE HAI.N रगों में भर गया है ज़हर तो आख़िर ग

ग़ज़ल - ज़ख़्म कुरेदा करते हैं हम भी कितने पागल हैं

ज़ख़्म कुरेदा करते हैं हम भी कितने पागल हैं ग़म को ज़िंदा रखते हैं हम भी कितने पागल हैं ZAKHM KUREDA KARTE HAIN HAM BHI KITNE PAAGAL HAIN GHAM KO ZINDA RAKHTE HAIN HAM BHI KITNE PAAGAL HAIN दिल के हर इक गोशे को रौशन यूँ कर रक्खा है सायों से भी डरते हैं हम भी कितने पागल हैं DIL KE HAR IK GOSHE KO ROSHAN YUN KAR RAKHA HAI SAAYON SE AB DARTE HAIN HAM BHI KITNE PAAGAL HAIN  जाने वाले लम्हों को अब भी ढूँढा करते हैं उम्मीदों पर जीते हैं हम भी कितने पागल हैं JAANE WAALE LAMHON KO AB BHI DHOONDA KARTE HAIN UMMEEDON PAR JEETE HAIN HAM BHI KITNE PAAGAL HAIN दिल की आह-ओ-ज़ारी को दफ़ना कर ख़ुद हँसते हैं सच से भागा करते हैं हम भी कितने पागल हैं DIL KI AAH O ZAARI KO DAFNAA KAR KHUD HANSTE HAIN SACH SE BHAAGA KARTE HAIN HAM BHI  PAAGAL HAIN हाल की चादर पर फैली बर्फ़ से खेला करते हैं अंदर अंदर जलते हैं हम भी कितने पागल हैं HAAL KI CHAADAR PAR PHAILI BARF SE KHELA KARTE HAIN ANDAR ANDAR JALTE HAIN HAM BHI KITNE PAAGAL HAIN एक सुनहरा ख़्वाब था जो जाने कब का