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ग़ज़ल - चार सू तारीकियाँ, सब हसरतें वीरान हैं

चार सू तारीकियाँ , सब हसरतें वीरान हैं जिस्म के अंधे नगर के रास्ते सुनसान हैं   chaar soo taarikiyan sab hasraten veeraan hain jism ke andhe nagar ke raaste sunsaan hain जीत जाते हम मगर तलवार हम ने फेंक दी ख़ुद ही हम अपनी शिकस्त-ए-ज़ात का ऐलान हैं Jeet jaate ham magar talwar hamne phenk di khud hi ham apni shikast e zaat ka ailaan hain चार क़दमों पर है मंज़िल , अब तुझे ये क्या हुआ क्यूँ नज़र धुँधला गई है , क्यूँ ख़ता औसान हैं chaar qadmon par hai manzil ab tujhe ye kya hua kyun nazar dhundla gai hai kyun khata ausaan hain आरज़ू , रिश्ते , मोहब्बत , रंज-ओ-ग़म , एहसास , ख़्वाब इस किताब-ए-ज़िन्दगी के कितने ही उनवान हैं aarzoo rishte mohabbat ranj o gham ehsaas khwaab is kitaab e zindagi ke kitne hi unwaan hain कैसी साहिर है ये हसरत , कैसा ये एहसास है वो उधर हैरतज़दा हैं , हम इधर हैरान हैं kaisi saahir hai ye hasrat kaisa ye ehsaas hai wo udhar hairatzada hain ham idhar hairaan hain फिर तसव्वर उड़ चला , तख़ईल फिर आज़ाद है बिखरी ज़ंज

सूनामी (TSUNAMI) (2011 में जापान में आई भयंकर सूनामी की खबर पढ़ कर ये नज़्म कही थी)

उठा वो क़हर मौजों का जो धरती की तरफ़ दौड़ा क़यामतख़ेज़ मौजों ने हर इक दीवार को तोड़ा लरज़ उट्ठी ज़मीं , हर ओर इक हंगाम तारी है बरहना मौत का ये रक़्स चारों सिम्त जारी है   UTHA WO QEHR MAUJON KA JO DHARTI KI TARAF DAUDA QAYAMAT KHEZ MAUJON NE HAR IK DEEWAR KO TODA LARAZ UTTHI ZAMEEN HAR OR IK HANGAAM TAARI HAI BARAHNA MAUT KA YE RAQS CHAARON SIMT JAARI HAI तमाशा मौत का , रक़्स-ए-ज़मीं , मौजों का हंगामा ये क़ुदरत का ग़ज़ब , ये डूबती लाशों का हंगामा ये जलते घर के घर , जलती हुई ये शहर की राहें क़यामत का रिएक्टर , ये ख़ुदा के क़हर की राहें ये ज़हन-ए-आदमी में छाई ज़ुल्मत का नतीजा हैं ये इंसाँ के ख़ुदा बनने की चाहत का नतीजा हैं TAMASHA MAUT KA, RAQS E ZAMEEN, MAUJON KA HANGAAMA YE QUDRAT KA GHAZAB YE DOOBTI LAASHON KA HANGAAMA YE JALTE GHAR KE GHAR JALTI HUI YE SHEHR KI RAAHEN QAYAMAT KA REACTOR YE KHUDA KE QEHR KI RAAHEN YE ZEHN E AADMI MEN CHHAI ZULMAT KA NATEEJA HAIN YE INSAAN KE KHUDA BAN NE KI CHAAHAT KA NATEEJA HAIN यहाँ सब कोशिशें नाकाम हैं , उम्मीद ब

ग़ज़ल - कौन है तू मेरा, क्या तुझ से मेरा रिश्ता है

कौन है तू मेरा , क्या तुझ से मेरा रिश्ता है अजनबी हो के भी अपना सा मुझे लगता है KAUN HAI TU MERA, KYA MUJH SE TERA RISHTA HAI AJNABEE HO KE BHI APNA SA MUJHE LAGATA HAI एक एहसास मुझे महव किए रहता है इक ख़यालों के समंदर में ये दिल डूबा है EK EHSAAS MUJHE MEHV KIYE REHTA HAI IK KHAYAALON KE SAMANDAR MEN YE DIL DOOBA HAI है तलबगार समंदर की मेरी तश्नालबी होंठ तो होंठ , मेरी रूह तलक तश्ना है HAI TALABGAAR SAMANDAR KI MERI TASHNALABI HONT TO HONT MERI ROOH TALAK TASHNA HAI इस उजाले ने तो बीनाई ही ले ली मेरी मैं ने सदियों से उजाला जो नहीं देखा है IS UJAALE NE TO BEENAAI HI LE LI MERI MAIN NE SADIYON SE UJAALA JO NAHIN DEKHA HAI कैसा आसेब मेरे दिल को लगा है अबके कैसा जादू है , अजब दिल पे नशा छाया है KAISA AASEB MERE DIL KO LAGA HAI AB KE KAISA JAADU HAI, AJAB DIL PE NASHA CHHAYA HAI एक एहसास जो लिपटा है मेरी रूह के साथ मेरी हस्ती से मुझे दूर लिए जाता है EK EHSSAS JO LIPTA HAI MERI ROOH KE SAATH MERI HASTI SE MUJHE DOOR LIYE JAA

ग़ज़ल - मुक़द्दर से ये अबके बार दिल जो जंग हारा है

मुक़द्दर से ये अबके बार दिल जो जंग हारा है तमन्ना रेज़ा रेज़ा है , मोहब्बत पारा पारा है MUQADDAR SE YE AB KE BAAR DIL JO JANG HAARA HAI TAMANNA REZA REZA HAI MOHABBAT PARA PARA HAI बड़ी मेहनत से जश्न-ए-आरज़ू के वास्ते जानाँ तेरी यादों से मैं ने दिल की गलियों को सँवारा है BADI MEHNAT SE JASHN E AARZOO KE WAASTE JAANAN TERI YAADON SE MAIN NE DIL KI GALIYON KO SANWAARA HAI पिये जाते है हम कब से समंदर अश्क का लेकिन मिटेगी तिश्नगी कैसे , ये पानी भी तो खारा है PIYE JAATE HAIN KAB SE HAM SAMANDAR ASHK KA PHIR BHI MITEGI TASHNAGI KAISE YE PAANI BHI TO KHARA HAI कभी तो आके फिर इक बार वो राहत ज़रा दे दे तुझे ऐ ज़िन्दगी , दिल की जलन ने फिर पुकारा है KABHI TO AA KE PHIR IK BAAR WO RAAHAT ZARA DE DE TUJHE AY ZINDAGI DIL KI JALAN NE PHIR PUKAARA HAI मुनासिब है अभी हम हौसले अपने बचा रक्खें भटकती है अभी कश्ती , अभी डूबा किनारा है MUNASIB HAI ABHI HAM HAUSLE APNE BACHA RAKHEN BHATAKTI HAI ABHI KASHTI ABHI DOOBA KINAARA HAI गुज़रता ही नहीं है ज़िन्दगी क

ग़ज़ल - फूट कर वो भी तो रोया होगा

फूट कर वो भी तो रोया होगा ख़ून-ए-दिल रंग तो लाया होगा PHOOT  KAR  WO  BHI  TO  ROYA   HOGA KHOON  E  DIL  RANG  TO LAAYA  HOGA कर लिया तर्क-ए-तअल्लुक़ लेकिन क्या मगर चैन से सोया होगा KAR LIYA TARK-E-TA’ALLUQ LEKIN KYA  MAGAR  CHAIN  SE  SOYA     HOGA ख़ुद सिमट कर कहीं अपने अंदर उसने बरसों तुम्हें सोचा होगा KHUD SIMAT KAR KAHIN APNE  ANDAR "US NE BARSON TUMHEN SOCHA HOGA ” मेरी वहशत का उसकी चाहत का एक अंजान सा रिश्ता होगा MERI WAHSHAT KA US KI CHAAHAT KA EK   ANJAAN   SA   RISHATAA        HOGA आग में हम ही नहीं झुलसे हैं उसकी आँखों में भी दरिया होगा   AAG MEN  HAM HI  NAHIN JHULSE HAIN US KI AANKHON MEN BHI DARIYA HOGA मेरी आँखों में उतर कर उसने इक हसीं ख़्वाब तो देखा होगा MERI AANKHON MEN UTAR KAR US NE WO HASEEN KHAAB TO DEKHA   HOGA ज़ख़्म तपका तो हुआ है एहसास उसका दिल ज़ोर से तड़पा होगा ZAKHM  JAB  TAPKA  TO  EHSAAS  HUA US  KA  DIL  ZOR  SE  TADPA         HOGA दे के “ मुमताज़ ” को ग़म का तोहफ़ा रात भर वो भी

ग़ज़ल - इस दर्द की शिद्दत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

इस दर्द की शिद्दत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते बरहक़ है अगर मौत तो मर क्यूँ नहीं जाते AB DARD KI SHIDDAT SE GUZAR KYUN NAHIN JAATE BAR HAQ HAI AGAR MAUT TO MAR KYUN NAHIN JAATE कब तक मैं संभालूँ ये मेरी ज़ात के टुकड़े रेज़े ये हर इक सिम्त बिखर क्यूँ नहीं जाते KAB TAK MAIN SAMBHALOON YE MERI ZAAT KE TUKDE REZE YE HAR IK SIMT BIKHAR KYUN NAHIN JAATE क़ातिल भी , गुनहगार भी , मुजरिम भी हमीं क्यूँ इल्ज़ाम किसी और के सर क्यूँ नहीं जाते QAATIL BHI GUNAHGAAR BHI MUJRIM BHI HAMEEN KYUN ILZAAM KISI AUR KE SAR KYUN NAHIN JAATE डरते हो तो अब तर्क-ए-इरादा भी तो कर लो हिम्मत है तो उस पार उतर क्यूँ नहीं जाते DARTE HO TO AB TARK E IRAADA BHI TO KAR DO HIMMAT HAI TO US PAAR UTAR KYUN NAHIN JAATE अब दर्द की शिद्दत भी मेरा इम्तेहाँ क्यूँ ले अब ज़ख़्म ये हालात के भर क्यूँ नहीं जाते AB DARD KI SHIDDAT BHI MERA IMTEHAAN KYUN LE AB ZAKHM YE HAALAT KE BHAR KYUN NAHIN JAATE ये सर्द तमन्नाएँ कहीं जान न ले लें एहसास के शो ’ लों से गुज़र क्यूँ नहीं जाते YE SARD TAMANN

ग़ज़ल - 6 (ज़ुल्म को अपनी क़िस्मत माने)

ज़ुल्म को अपनी क़िस्मत माने , दहशत को यलग़ार कहे अपने हक़ से भी ग़ाफ़िल हो , कौन उसे बेदार कहे ZULM KO APNI QISMAT MAANE DAHSHAT KO YALGHAAR KAHE APNE HAQ SE BHI GHAAFIL HO KAUN USE BEDAAR KAHE ज़ख़्मों को बेक़ीमत समझे , अश्कों को ऐयार कहे ऐसे बेपरवा से अपने दिल की जलन बेकार कहे ZAKHMON KO BEQEEMAT SAMJHE ASHKON KO AIYYAR KAHE AISE BEPARWAAH SE APNE DIL KI JALAN BEKAAR KAHE अपना अपना ज़ौक़-ए-नज़र है , अपनी अपनी फ़ितरत है मैं इज़हार-ए-हाल करूँ तो तू उसको तक़रार कहे APNA APNA ZAUQ E NAZAR HAI APNI APNI FITRAT HAI MAIN IZHAAR E HAAL KA R UN TO TU US KO TAQRAAR KAHE सीख गया है जीने के अंदाज़ जहान-ए-हसरत में हर इक बात इशारों में अब तो ये दिल-ए-हुशियार कहे SEEKH GAYA HAI JEENE KE ANDAAZ JAHAAN E HASRAT MEN HAR IK BAAT ISHAARON MEN AB TO YE DIL E HUSHIYAAR KAHE जाने दो “ मुमताज़ ” मैं क्या हूँ , पागल हूँ , सौदाई हूँ मैं झूठी , मेरी बातें झूठी , मानो जो अग़यार कहे JAANE DO 'MUMTAZ', MAIN KYA HOON, PAAGAL HOON SAUDAAI HOON MAIN JHOOTI MERI BAA