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ग़ज़ल - फूट कर वो भी तो रोया होगा

फूट कर वो भी तो रोया होगा ख़ून-ए-दिल रंग तो लाया होगा PHOOT  KAR  WO  BHI  TO  ROYA   HOGA KHOON  E  DIL  RANG  TO LAAYA  HOGA कर लिया तर्क-ए-तअल्लुक़ लेकिन क्या मगर चैन से सोया होगा KAR LIYA TARK-E-TA’ALLUQ LEKIN KYA  MAGAR  CHAIN  SE  SOYA     HOGA ख़ुद सिमट कर कहीं अपने अंदर उसने बरसों तुम्हें सोचा होगा KHUD SIMAT KAR KAHIN APNE  ANDAR "US NE BARSON TUMHEN SOCHA HOGA ” मेरी वहशत का उसकी चाहत का एक अंजान सा रिश्ता होगा MERI WAHSHAT KA US KI CHAAHAT KA EK   ANJAAN   SA   RISHATAA        HOGA आग में हम ही नहीं झुलसे हैं उसकी आँखों में भी दरिया होगा   AAG MEN  HAM HI  NAHIN JHULSE HAIN US KI AANKHON MEN BHI DARIYA HOGA मेरी आँखों में उतर कर उसने इक हसीं ख़्वाब तो देखा होगा MERI AANKHON MEN UTAR KAR US NE WO HASEEN KHAAB TO DEKHA   HOGA ज़ख़्म तपका तो हुआ है एहसास उसका दिल ज़ोर से तड़पा होगा ZAKHM  JAB  TAPKA  TO  EHSAAS  HUA US  KA  DIL  ZOR  SE  TADPA         HOGA दे के “ मुमताज़ ” को ग़म का तोहफ़ा रात भर वो भी

ग़ज़ल - इस दर्द की शिद्दत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

इस दर्द की शिद्दत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते बरहक़ है अगर मौत तो मर क्यूँ नहीं जाते AB DARD KI SHIDDAT SE GUZAR KYUN NAHIN JAATE BAR HAQ HAI AGAR MAUT TO MAR KYUN NAHIN JAATE कब तक मैं संभालूँ ये मेरी ज़ात के टुकड़े रेज़े ये हर इक सिम्त बिखर क्यूँ नहीं जाते KAB TAK MAIN SAMBHALOON YE MERI ZAAT KE TUKDE REZE YE HAR IK SIMT BIKHAR KYUN NAHIN JAATE क़ातिल भी , गुनहगार भी , मुजरिम भी हमीं क्यूँ इल्ज़ाम किसी और के सर क्यूँ नहीं जाते QAATIL BHI GUNAHGAAR BHI MUJRIM BHI HAMEEN KYUN ILZAAM KISI AUR KE SAR KYUN NAHIN JAATE डरते हो तो अब तर्क-ए-इरादा भी तो कर लो हिम्मत है तो उस पार उतर क्यूँ नहीं जाते DARTE HO TO AB TARK E IRAADA BHI TO KAR DO HIMMAT HAI TO US PAAR UTAR KYUN NAHIN JAATE अब दर्द की शिद्दत भी मेरा इम्तेहाँ क्यूँ ले अब ज़ख़्म ये हालात के भर क्यूँ नहीं जाते AB DARD KI SHIDDAT BHI MERA IMTEHAAN KYUN LE AB ZAKHM YE HAALAT KE BHAR KYUN NAHIN JAATE ये सर्द तमन्नाएँ कहीं जान न ले लें एहसास के शो ’ लों से गुज़र क्यूँ नहीं जाते YE SARD TAMANN

ग़ज़ल - 6 (ज़ुल्म को अपनी क़िस्मत माने)

ज़ुल्म को अपनी क़िस्मत माने , दहशत को यलग़ार कहे अपने हक़ से भी ग़ाफ़िल हो , कौन उसे बेदार कहे ZULM KO APNI QISMAT MAANE DAHSHAT KO YALGHAAR KAHE APNE HAQ SE BHI GHAAFIL HO KAUN USE BEDAAR KAHE ज़ख़्मों को बेक़ीमत समझे , अश्कों को ऐयार कहे ऐसे बेपरवा से अपने दिल की जलन बेकार कहे ZAKHMON KO BEQEEMAT SAMJHE ASHKON KO AIYYAR KAHE AISE BEPARWAAH SE APNE DIL KI JALAN BEKAAR KAHE अपना अपना ज़ौक़-ए-नज़र है , अपनी अपनी फ़ितरत है मैं इज़हार-ए-हाल करूँ तो तू उसको तक़रार कहे APNA APNA ZAUQ E NAZAR HAI APNI APNI FITRAT HAI MAIN IZHAAR E HAAL KA R UN TO TU US KO TAQRAAR KAHE सीख गया है जीने के अंदाज़ जहान-ए-हसरत में हर इक बात इशारों में अब तो ये दिल-ए-हुशियार कहे SEEKH GAYA HAI JEENE KE ANDAAZ JAHAAN E HASRAT MEN HAR IK BAAT ISHAARON MEN AB TO YE DIL E HUSHIYAAR KAHE जाने दो “ मुमताज़ ” मैं क्या हूँ , पागल हूँ , सौदाई हूँ मैं झूठी , मेरी बातें झूठी , मानो जो अग़यार कहे JAANE DO 'MUMTAZ', MAIN KYA HOON, PAAGAL HOON SAUDAAI HOON MAIN JHOOTI MERI BAA

ग़ज़ल - लम्हा लम्हा ज़िन्दगी का

मेरी ये ग़ज़ल उर्दू मैगज़ीन "इंशा" में छप कर मक़बूल हो चुकी है। ये ग़ज़ल आप लोगों के लिए पेश-ए-ख़िदमत है लम्हा लम्हा ज़िन्दगी का इक सज़ा होने लगा अब तो हर इक दर्द-ए-पैहम लादवा होने लगा LAMHA LAMHA ZINDAGI KA IK SAZAA HONE LAGA AB TO HAR  IK DARD E PAIHAM LADAVAA HONE LAGA रास्ते की जुस्तजू जब की तो मंज़िल मिल गई मंज़िलें ढूँढ़ीं तो रस्ता नारसा होने लगा RAASTE KI JUSTJU JAB KI TO MANZIL MIL GAI MANZILEN DHOONDIN TO RASTAA NARASAA HONE LAGA ऐ मोहब्बत तेरे इस एहसान का बस शुक्रिया अब तो तेरे नाम से भी ख़ौफ़ सा होने लगा AEY MOHABBAT TERE IS EHSAAN KA BAS SHUKRIYA AB TO TERE NAAM SE BHI KHAUF SA HONE LAGA करवटें लेता है दिल में फिर से इक तूफ़ान सा हम अभी मुश्किल से संभले थे , ये क्या होने लगा KARWATEN LETA HAI DIL MEN PHIR SE IK TOOFAAN SA HAM ABHI MUSHKIL SE SAMBHLE THE YE KYA HONE LAGA ये रबाब-ए-दिल तो इक मुद्दत हुई , ख़ामोश है क्यूँ ये साज़-ए-बेसदा नग़्मासरा होने लगा YE RABAAB E DIL TO IK MUDDAT HUI KHAAMOSH HAI KYUN YE SAAZ E BESADAA NAGHMA SA

वो दिन याद करो (WO DIN YAAD KARO)

ग़म-ए-दुनिया के हर इक काम से मोहलत ले कर कभी फ़ुरसत में जो बैठो तो वो दिन याद करो GHAM E DUNIYA KE HAR IK KAAM SE MOHLAT LE KAR KABHI FURSAT MEN JO BAITHO TO WO DIN YAAD KARO वो लड़कपन का ज़माना, वो सहेली, साथी साथ मिल कर जो बुझाई वो पहेली साथी कितने मासूम थे दिन, कितने सुनहरे सपने छोटी छोटी सी ख़ुशी, छोटे से ग़म थे अपने वो खिलौनों की क़तारें, वो हर इक बात में खेल वो ज़रा देर में लड़ना, वो ज़रा देर में मेल WO LADAKPAN KA ZAMANA WO SAHELI SAATHI SAATH MIL KAR JO BUJHAAI WO PAHELI SAATHI KITNE MAASOOM THE DIN KITNE SUNAHRE SAPNE CHHOTI CHHOTI SI KHUSHI CHHOTE SE GHAM THE APNE WO KHILONON KI QATAAREN WO HAR IK BAAT MEN KHEL WO ZARA DER MEN LADNA WO ZARA DER MEN MEL रतजगे गर्म सी रातों के, वो छत का बिस्तर छेड़ देना वो तेरा तार-ए-मोहब्बत अक्सर कभी रंगीन इशारे तो कभी सरगोशी कभी जलती हुई ख़्वाहिश वो कभी मदहोशी RATJAGE GARM SI RAATON KE WO CHHAT KA BISTAR CHHED DENA WO TERA TAAR E MOHABBAT AKSAR KABHI RANGEEN ISHAARE WO KABHI SARGOSHI KABHI JALTI HUI KHWAAHISH WO KABHI MADHOSH

GHAZAL-4

DIL KE SAB RAAZ ZAMANE PE AYAAN KAR JAAEN KAM NA HO JAAE KHUSHI AAJ CHALO MAR JAAEN DAR BA DAR HO KE BHI HAM KO KAHIN RAAHAT NA MILI DIL TO YE KARTA HAI PHIR US KE HI DAR PAR JAAEN APNI AAWARA MIZAAJI BHI CHALO HAAR GAI WAHSHATEN KEHTI HAIN IK BAAR ZARA GHAR JAAEN AB SAMBHAALENGE KAHAN DAULAT E BARBAADI E DIL AB AGAR JAAEN TO IS SHEHR SE LUT KAR JAAEN IS UJAALE SE TO BEENAAI BHI ZAKHMEE HO JAAE HAM AGAR APNE ANDHERE SE JO BAAHAR JAAEN CHHEDTE RAHTE HAIN HAM YAADON KE NASHTAR SE KE YE ZAKHM KUCHH AUR KHILEN YE NA KAHIN BHAR JAAEN JAB GUNAHGAAR HI AADIL HO TO PHIR KYA KAHIYE SAARE ILZAAM SABHI JURM MERE SAR JAAEN SAANS LENA BHI HUA JURM KE 'MUMTAZ' CHALO MASLEHAT KA YE TAQAAZA HAI KE AB MAR JAAEN

औरत की कहानी (WOMEN'S DAY PAR......................)

कभी ग़ैरों ने लूटा है , कभी अपनी ही ग़ैरत ने ये औरत की कहानी खून से लिक्खी है क़ुदरत ने ये वो औरत , के जिस के दम से दुनिया है , ज़माना है ये वो औरत , कि जिस ने प्यार का बाँटा ख़ज़ाना है कभी माँ बन के आँचल में जो बेटों को छुपाती है मगर वो कोख में ही क़त्ल फिर भी कर दी जाती है बहन बन कर दुआएं मांगती है भाई की ख़ातिर बहन वो बेच दी जाती है पाई पाई की ख़ातिर मोहब्बत के सिले में कैसे ये इनआम देते हैं हैं कैसे भाई , जो बहनों की इज्ज़त लूट लेते हैं निगाहों की चुभन , हैवानियत , और आबरू रेज़ी जिगर पर मर्द की फ़िरऔनियत की बर्क़ अंगेज़ी बदन की धज्जियाँ उडती हैं तो दिल खून रोता है यहाँ निस्वानियत का बस यही अंजाम होता है सफ़र करती है हर दम तेज़ तलवारों के धारे पर है इस का हर क़दम माँ , बाप , भाई के इशारे पर कि इस के वास्ते आसाँ नहीं है अश्क पीना भी मोहब्बत जुर्म , औरत के लिए है जुर्म जीना भी अगर ये सर झुका कर सब सहन कर ले , तो देवी है ज़रा सी आह भी कर दे , तो ये शैताँ की बेटी है न जिस का अपना हँसना है , न जिस का अपना रोना है ये मर्दों के बनाए इस जहाँ में इक खिलौना