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ग़ज़ल - 6 (ज़ुल्म को अपनी क़िस्मत माने)

ज़ुल्म को अपनी क़िस्मत माने , दहशत को यलग़ार कहे अपने हक़ से भी ग़ाफ़िल हो , कौन उसे बेदार कहे ZULM KO APNI QISMAT MAANE DAHSHAT KO YALGHAAR KAHE APNE HAQ SE BHI GHAAFIL HO KAUN USE BEDAAR KAHE ज़ख़्मों को बेक़ीमत समझे , अश्कों को ऐयार कहे ऐसे बेपरवा से अपने दिल की जलन बेकार कहे ZAKHMON KO BEQEEMAT SAMJHE ASHKON KO AIYYAR KAHE AISE BEPARWAAH SE APNE DIL KI JALAN BEKAAR KAHE अपना अपना ज़ौक़-ए-नज़र है , अपनी अपनी फ़ितरत है मैं इज़हार-ए-हाल करूँ तो तू उसको तक़रार कहे APNA APNA ZAUQ E NAZAR HAI APNI APNI FITRAT HAI MAIN IZHAAR E HAAL KA R UN TO TU US KO TAQRAAR KAHE सीख गया है जीने के अंदाज़ जहान-ए-हसरत में हर इक बात इशारों में अब तो ये दिल-ए-हुशियार कहे SEEKH GAYA HAI JEENE KE ANDAAZ JAHAAN E HASRAT MEN HAR IK BAAT ISHAARON MEN AB TO YE DIL E HUSHIYAAR KAHE जाने दो “ मुमताज़ ” मैं क्या हूँ , पागल हूँ , सौदाई हूँ मैं झूठी , मेरी बातें झूठी , मानो जो अग़यार कहे JAANE DO 'MUMTAZ', MAIN KYA HOON, PAAGAL HOON SAUDAAI HOON MAIN JHOOTI MERI BAA

ग़ज़ल - लम्हा लम्हा ज़िन्दगी का

मेरी ये ग़ज़ल उर्दू मैगज़ीन "इंशा" में छप कर मक़बूल हो चुकी है। ये ग़ज़ल आप लोगों के लिए पेश-ए-ख़िदमत है लम्हा लम्हा ज़िन्दगी का इक सज़ा होने लगा अब तो हर इक दर्द-ए-पैहम लादवा होने लगा LAMHA LAMHA ZINDAGI KA IK SAZAA HONE LAGA AB TO HAR  IK DARD E PAIHAM LADAVAA HONE LAGA रास्ते की जुस्तजू जब की तो मंज़िल मिल गई मंज़िलें ढूँढ़ीं तो रस्ता नारसा होने लगा RAASTE KI JUSTJU JAB KI TO MANZIL MIL GAI MANZILEN DHOONDIN TO RASTAA NARASAA HONE LAGA ऐ मोहब्बत तेरे इस एहसान का बस शुक्रिया अब तो तेरे नाम से भी ख़ौफ़ सा होने लगा AEY MOHABBAT TERE IS EHSAAN KA BAS SHUKRIYA AB TO TERE NAAM SE BHI KHAUF SA HONE LAGA करवटें लेता है दिल में फिर से इक तूफ़ान सा हम अभी मुश्किल से संभले थे , ये क्या होने लगा KARWATEN LETA HAI DIL MEN PHIR SE IK TOOFAAN SA HAM ABHI MUSHKIL SE SAMBHLE THE YE KYA HONE LAGA ये रबाब-ए-दिल तो इक मुद्दत हुई , ख़ामोश है क्यूँ ये साज़-ए-बेसदा नग़्मासरा होने लगा YE RABAAB E DIL TO IK MUDDAT HUI KHAAMOSH HAI KYUN YE SAAZ E BESADAA NAGHMA SA

वो दिन याद करो (WO DIN YAAD KARO)

ग़म-ए-दुनिया के हर इक काम से मोहलत ले कर कभी फ़ुरसत में जो बैठो तो वो दिन याद करो GHAM E DUNIYA KE HAR IK KAAM SE MOHLAT LE KAR KABHI FURSAT MEN JO BAITHO TO WO DIN YAAD KARO वो लड़कपन का ज़माना, वो सहेली, साथी साथ मिल कर जो बुझाई वो पहेली साथी कितने मासूम थे दिन, कितने सुनहरे सपने छोटी छोटी सी ख़ुशी, छोटे से ग़म थे अपने वो खिलौनों की क़तारें, वो हर इक बात में खेल वो ज़रा देर में लड़ना, वो ज़रा देर में मेल WO LADAKPAN KA ZAMANA WO SAHELI SAATHI SAATH MIL KAR JO BUJHAAI WO PAHELI SAATHI KITNE MAASOOM THE DIN KITNE SUNAHRE SAPNE CHHOTI CHHOTI SI KHUSHI CHHOTE SE GHAM THE APNE WO KHILONON KI QATAAREN WO HAR IK BAAT MEN KHEL WO ZARA DER MEN LADNA WO ZARA DER MEN MEL रतजगे गर्म सी रातों के, वो छत का बिस्तर छेड़ देना वो तेरा तार-ए-मोहब्बत अक्सर कभी रंगीन इशारे तो कभी सरगोशी कभी जलती हुई ख़्वाहिश वो कभी मदहोशी RATJAGE GARM SI RAATON KE WO CHHAT KA BISTAR CHHED DENA WO TERA TAAR E MOHABBAT AKSAR KABHI RANGEEN ISHAARE WO KABHI SARGOSHI KABHI JALTI HUI KHWAAHISH WO KABHI MADHOSH

GHAZAL-4

DIL KE SAB RAAZ ZAMANE PE AYAAN KAR JAAEN KAM NA HO JAAE KHUSHI AAJ CHALO MAR JAAEN DAR BA DAR HO KE BHI HAM KO KAHIN RAAHAT NA MILI DIL TO YE KARTA HAI PHIR US KE HI DAR PAR JAAEN APNI AAWARA MIZAAJI BHI CHALO HAAR GAI WAHSHATEN KEHTI HAIN IK BAAR ZARA GHAR JAAEN AB SAMBHAALENGE KAHAN DAULAT E BARBAADI E DIL AB AGAR JAAEN TO IS SHEHR SE LUT KAR JAAEN IS UJAALE SE TO BEENAAI BHI ZAKHMEE HO JAAE HAM AGAR APNE ANDHERE SE JO BAAHAR JAAEN CHHEDTE RAHTE HAIN HAM YAADON KE NASHTAR SE KE YE ZAKHM KUCHH AUR KHILEN YE NA KAHIN BHAR JAAEN JAB GUNAHGAAR HI AADIL HO TO PHIR KYA KAHIYE SAARE ILZAAM SABHI JURM MERE SAR JAAEN SAANS LENA BHI HUA JURM KE 'MUMTAZ' CHALO MASLEHAT KA YE TAQAAZA HAI KE AB MAR JAAEN

औरत की कहानी (WOMEN'S DAY PAR......................)

कभी ग़ैरों ने लूटा है , कभी अपनी ही ग़ैरत ने ये औरत की कहानी खून से लिक्खी है क़ुदरत ने ये वो औरत , के जिस के दम से दुनिया है , ज़माना है ये वो औरत , कि जिस ने प्यार का बाँटा ख़ज़ाना है कभी माँ बन के आँचल में जो बेटों को छुपाती है मगर वो कोख में ही क़त्ल फिर भी कर दी जाती है बहन बन कर दुआएं मांगती है भाई की ख़ातिर बहन वो बेच दी जाती है पाई पाई की ख़ातिर मोहब्बत के सिले में कैसे ये इनआम देते हैं हैं कैसे भाई , जो बहनों की इज्ज़त लूट लेते हैं निगाहों की चुभन , हैवानियत , और आबरू रेज़ी जिगर पर मर्द की फ़िरऔनियत की बर्क़ अंगेज़ी बदन की धज्जियाँ उडती हैं तो दिल खून रोता है यहाँ निस्वानियत का बस यही अंजाम होता है सफ़र करती है हर दम तेज़ तलवारों के धारे पर है इस का हर क़दम माँ , बाप , भाई के इशारे पर कि इस के वास्ते आसाँ नहीं है अश्क पीना भी मोहब्बत जुर्म , औरत के लिए है जुर्म जीना भी अगर ये सर झुका कर सब सहन कर ले , तो देवी है ज़रा सी आह भी कर दे , तो ये शैताँ की बेटी है न जिस का अपना हँसना है , न जिस का अपना रोना है ये मर्दों के बनाए इस जहाँ में इक खिलौना

ग़ज़ल - ये बाब-ए-राज़-ए-उल्फ़त है

ये बाब-ए-राज़-ए-उल्फ़त है, ये खुलवाया नहीं जाता मोअम्मा अब किसी सूरत ये सुलझाया नहीं जाता YE BAAB E RAAZ E ULFAT HAI YE KHULWAAYA NAHIN JAATA MOAMMA AB KISI SOORAT YE SULJHAYA NAHIN JAATA मोहब्बत की नहीं जाती मोहब्बत हो ही जाती है कि दानिस्ता तो ये धोखा कभी खाया नहीं जाता MOHABBAT KI NAHIN JAATI MOHABBAT HO HI JAATI HAI KE DAANISTA TO YE DHOKA KABHI KHAYA NAHIN JAATA न जाने कैसी उलझन में हमें उलझा दिया उसने करें क्या, ये भी अब उससे तो फ़रमाया नहीं जाता NA JAANE KAISI ULJHAN MEN HAMEN ULJHA DIYA US NE KAREN KYA YE BHI AB US SE TO FARMAAYA NAHIN JATA मुसीबत, यास, रंज-ओ-ग़म, अताएँ बेबहा उसकी ये उसका बेकरां एहसाँ तो गिनवाया नहीं जाता ALAM RANJ O MUSEEBAT GHAM ATAAEN BEBAHA US KI KE AB YE BEKARAAN EHSAAN TO GINWAAYA NAHIN JAATA ये उसपे मुनहसिर है अब, समझ ले, गर समझ पाए अब अपना हाल-ए-दिल हम से तो बतलाया नहीं जाता YE US PE MUNHASIR HAI AB SAMAJH LE GAR SAMAJH PAAE AB APNA HAAL E DIL HAM SE TO BATLAAYA NAHIN JAATA ये दर्द-ओ-यास की दौलत हर इक दिल को नहीं मिलती हर इक बतन-

ग़ज़ल - कभी तक़दीर ने लूटा, कभी वहशत ने ठुकराया

कभी तक़दीर ने लूटा, कभी वहशत ने ठुकराया हज़ारों कोशिशें कर लीं हमें जीना न रास आया KABHI TAQDEER NE LOOTA KABHI WAHSHAT NE THUKRAAYA HAZAARON KOSHISHEN KAR LEEN HAMEN JEENA NA RAAS AAYA वही, जिसके लिए हमने वजूद अपना मिटा डाला उसी ने दर्द-ए-लाफ़ानी का तोहफ़ा हमको लौटाया WAHI JIS KE LIYE HAM NE WAJOOD APNA MITA DAALAA USI NE DARD E LAAFAANI KA TOHFAA HAM KO LAUTAAYA खड़े हैं दर्द के साहिल पे और ये सोचते हैं हम सफ़र का शौक़ किस मंज़िल पे हमको आज ले आया KHADE HAIN DARD KE SAAHIL PE AUR YE SOCHTE HAIN HAM SAFAR KA SHAUQ KIS MANZIL PE HAM KO AAJ LE AAYA चली पुरवाई तो दिल की सभी चोटें उभर आईं मगर इक याद ने दिल के सभी छालों को सहलाया CHALI PURWAAI TO DIL KI SABHI CHOTEN UBHAR AAIN MAGAR IK YAAD NE DIL KE SABHI CHHAALON KO SAHLAAYA हद-ए-बीनाई तक तन्हाई है, वहशत है, ज़ुल्मत है मोहब्बत ने हमें ये आज किस मंज़िल पे पहुंचाया HAD E BEENAAI TAK TANHAAI HAI WAHSHAT HAI ZULMAT HAI MOHABBAT NE HAMEN YE AAJ KIS MANZIL PE PAHUNCHAAYA ये आलम नफ़्सा-नफ़्सी का, मसाइल अपने काफ़ी हैं ये सोचे कौन ऐ