ग़ज़ल - लम्हा लम्हा ज़िन्दगी का
मेरी ये ग़ज़ल उर्दू मैगज़ीन "इंशा" में छप कर मक़बूल हो चुकी है। ये ग़ज़ल आप लोगों के लिए पेश-ए-ख़िदमत है लम्हा लम्हा ज़िन्दगी का इक सज़ा होने लगा अब तो हर इक दर्द-ए-पैहम लादवा होने लगा LAMHA LAMHA ZINDAGI KA IK SAZAA HONE LAGA AB TO HAR IK DARD E PAIHAM LADAVAA HONE LAGA रास्ते की जुस्तजू जब की तो मंज़िल मिल गई मंज़िलें ढूँढ़ीं तो रस्ता नारसा होने लगा RAASTE KI JUSTJU JAB KI TO MANZIL MIL GAI MANZILEN DHOONDIN TO RASTAA NARASAA HONE LAGA ऐ मोहब्बत तेरे इस एहसान का बस शुक्रिया अब तो तेरे नाम से भी ख़ौफ़ सा होने लगा AEY MOHABBAT TERE IS EHSAAN KA BAS SHUKRIYA AB TO TERE NAAM SE BHI KHAUF SA HONE LAGA करवटें लेता है दिल में फिर से इक तूफ़ान सा हम अभी मुश्किल से संभले थे , ये क्या होने लगा KARWATEN LETA HAI DIL MEN PHIR SE IK TOOFAAN SA HAM ABHI MUSHKIL SE SAMBHLE THE YE KYA HONE LAGA ये रबाब-ए-दिल तो इक मुद्दत हुई , ख़ामोश है क्यूँ ये साज़-ए-बेसदा नग़्मासरा होने लगा YE RABAAB E DIL TO IK MUDDAT HUI KHAAMOSH HAI KYUN YE SAAZ E BESADAA NAGHMA SA